Wednesday, November 25, 2020

हिंदी व्याकरण 'रस' परिभाषा एवं उदाहरण कक्षा 12 की व 11वीं के लिए उपयोगी

                       रस

परिचय

 रस का शाब्दिक अर्थ निचोड़ होता है |किसी कविता ,कहानी ,उपन्यास आदि को पढ़कर, सुनकर या देखकर उसके प्रति हमारे हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है उसे रस कहते हैं |जैसे चुटकुला सुनकर हंसना ,किसी भयानक दृश्य को देखकर डर जाना आदि सब रस के ही भाव है|

रस की परिभाषा

 नाट्यशास्त्र में भरत मुनि ने रस की व्याख्या करते  है," विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रस निष्पत्ति:" अर्थात विभाव ,अनुभाव, व्यभिचारी के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है |



१)  श्रृंगार रस : -

श्रृंगार रस कवियों का अत्यंत प्रिय रस रहा है| इसका स्थाई भाव प्रेम या रति है |इसके अंतर्गत सौंदर्य प्रकृति, नायक व नायिका अथवा स्त्री-पुरुष के प्रेम-प्रसंग,  चेष्टाओं  क्रियाकलापों का श्रृंगारिक वर्णन प्रेम, मिलने -बिछड़ने आदि जैसी क्रियाओं का वर्णन होता है वहां "श्रृंगार रस" होता है | इस रस को "रसराज "की उपमा दी गई है |

 उदाहरण :-
१) राम के रूप निहारती जानकी, कंकन के नग         की परछाई,
    यातै  सबै सुधि भूली गई, कर टेकि रही पल           टारत और नाही|

                              (कवितावली ,कवि गोस्वामी तुलसीदास) उपर्युक्त पंक्तियां ‘गोस्वामी तुलसीदास’ के ग्रंथ “कवितावली” के ‘बालकांड’ प्रसंग से ली गयी हैं। ये प्रसंग उस समय का है जब श्रीराम और सीता के विवाहोत्‍सव का कार्यक्रम चल रहा है। सब जन मिलकर मंगलगीत गा रहे हैं। युवा ब्राह्मण एकमेव स्वर में वेदपाठ कर रहे हैं। प्रस्तुत पंक्‍तियों में तुलसीदास जी कहते हैं कि सीता प्रभु श्रीराम का रूप निहार रही हैं क्योंकि दूल्हे के वेश में श्रीराम अत्यन्त मनमोहक दिख रहे हैं। जब अपने हाथ में पहने कंगन में जड़ित नग में प्रभु श्रीराम की मनमोहक छवि की परछाई देखती हैं तो वो स्वयं को रोक नही पातीं हैं और एकटक प्रभु श्रीराम की मनमोहक छवि को निहारती रह जाती हैं |

यहां पर राम और सीता के ह्रदय में एक दूसरे के लिए प्रेम उत्पन्न हुआ अत:  यहा पर श्रृंगार रस हैं|

उदाहरण :-२) 

कहत, नटत, रीझत, खिझत,  मिलात, खिलत  लजियात|
     भरे भौन में करत है, नैननू ही सौं बात

    -(कवि- बिहारी, बिहारी सतसई दोहा नंबर 62)

शब्दार्थ :-

कहत = कहना 
नटत = इनकार करना 
रिझत = रिझना ; प्रसन्न होना 
खिझत= खिजना 
मिलत =  मिलना
 खिलत = खिल जाना
लजियात = शर्माना 
भौन = भवन ; महल
 नैननू = नेत्र से ;आंखों से 

 कवि बिहारी जी कहना चाहते हैं कि एक ज़माना था जहां पर बड़े-बूढ़ों की  उपस्थिति में पति -पत्नी  या स्त्री पुरुष का आपस में बात करना गलत समझा जाता था| ऐसे माहौल में जहां बड़े बुजुर्ग है वहॉ नायक व नायिका की चेष्टाओं का वर्णन किया गया है| वर्णन इस प्रकार है -
बड़े बुजुर्गों से भरा हुआ घर का वातावरण है ऐसे में पति-पत्नी दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर पाते हैं ,अतः वे दोनों इशारों में ही एक दूसरे से बात करते हैं |नायक अर्थात पति अपनी नायिका अर्थात पत्नी से मिलने के लिए आंखों के इशारे से कहता है ,वहीं पर पत्नी शर्मा कर बड़े ही भोलेपन से मिलने से इंकार करती है उसकी इनकार पर पति रीझ जाता है |पति का रिझना देखकर पत्नी खींचने का नाटक करती है |इस तरह से दोनों की नजरें मिलती है ,नजरों ही नजरों में दोनों एक दूसरे से मिलन कर लेते हैं और मिलने के पश्चात वे दोनों खिल उठते हैं |
इस तरह से कवि बिहारी ने बड़े सुंदर ढंग से नायक - नायिका व उनके द्वारा किए गए नेत्रों से इशारे का बड़े सुंदर ढंग से वर्णन किया है|
यहां पर नायक- नायिका के बीच में जो रति निर्माण हुई है वह श्रृंगार रस है |

श्रृंगार रस के अन्य उदाहरण :-
२) "मैं इन सब के परे अपलक तुम्हें देख रही हूं 
     हर शब्द अंजूरी बनाकर, बूंद-बूंद तुम्हें पी रही हूं 
     और तुम्हारा तेज मेरे जिस्म के एक - एक मूर्छित संवेदन को       धधक रहा है |"
(युवकभारती कक्षा बारहवीं, कनुप्रिया पृष्ठ संख्या ७७) 
२)  "मेरे तो गिरधर गोपाल ,दूसरो न कोई 
       जाके सिर मोर मुकुट ,मेरो पति सोई |"

शांत रस :-

शांत रस की परिभाषा :- तत्व ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर शांत रस की उत्पत्ति होती है |जहां ना दुख है ,न सुख, न द्वेष , न राग और न कोई इच्छा है ऐसी मनोस्थिति में उत्पन्न रस को "शांत रस" कहते हैं |इसका स्थाई भाव शांति अनिर्वेद है|

उदाहरण :-

"माला फेरत जुग भया ,गया न मन का फेर |
कर का मनका डारि कै, मन का मनका फेर ||

       
             (-संत कबीर दास जी )
शब्दार्थ :- 
फेरत= घुमाना 
जुग भया= युग बिता दिए
कर = हाथ 
मनका = भगवान के नाम जपने की रुद्राक्ष की माला

दोहे का भावार्थ :-
कबीर दास जी कहना चाहते हैं कि हम भगवान का नाम लेते हैं और माला को घुमाते रहते हैं ताकि हमारा मन शुद्ध हो जाए , शांत हो जाए लेकिन ऐसा करने पर भी हमारा मन शुद्ध नहीं होता है क्योंकि और इसी तरह से माला को घुमाते -घुमाते कई युग बीत गए लेकिन हमारे मन की हलचल या उथल-पुथल शांत नहीं हुई क्योंकि केवल ईश्वर का नाम लेने से हमारा मन शांत नहीं होगा ; हमारा मन शांत तब होगा जब हम अपने विचारों में शुद्धता लाएंगे |अपने विचारों पर नियंत्रण रखेंगे |अपने ह्रदय पर नियंत्रण रखेंगे तब ही सही मायने में हमारा मन जो कि विचलित है वह शांत होगा|

उदाहरण :-


२) "माटी कहै कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोहे |
     एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौदूंगी तोहे ||

शब्दार्थ :-

माटी =मिट्टी 
कहे = कहना 
कुम्हार = मिट्टी के पात्र बनाने वाला 
रौंदे =रौंदना, पैरों से कुचलना 
मोहे = मुझको 
तोहे = तुझको

दोहे का भावार्थ :-

कुम्हार पात्र बनाने के लिए जब मिट्टी के ऊपर खड़ा होकर उसे चिकना करता है अर्थात उसे अपने पैरों तले रौंदता है तब मिट्टी  कहती हैं कि आज तू मुझे रौंद रहा है क्योंकि आज तेरा समय अच्छा है ; लेकिन कल जब तेरा समय खत्म हो जाएगा और तू अर्थात तेरी मृत्यु हो जाएंगी उस समय मैं(मिट्टी) तुझे रौंदूंगी |तेरे अस्तित्व का नाश कर दूंगी |
कबीर दास जी ने यहां पर समय को अधिक महत्व दिया है और कहा है कि इंसान ने कभी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि यह जीवन क्षणभंगुर है| समय बहुत बलवान होता है| वह हर किसी के साथ अच्छा या बुरा नहीं रहता है समय के हिसाब से उसमें परिवर्तन होते रहता है |

शांत रस के अन्य उदाहरण:-

१) " सीता गई तुम भी चले मैं भी ना जिऊंगा यहां ,
     सुग्रीव बोले साथ में सब जाएंगे वानर वहां |"

२) "अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी,
      आंचल में है दूध और आंखों में पानी |"
                                                   ( मैथिलीशरण गुप्त )    ३) "हाय रुक गया यही संसार 
     बना सिंदूर अनल अंगार 
     वातहत लतिका वह सुकुमार 
     पड़ी है चिन्नाधार |"
                                                   (सुमित्रानंदन पंत)


बीभत्स रस :- 

बीभत्स रस की परिभाषा:-
जहां घिनौने पदार्थ को देखकर ग्लानि उत्पन्न हो वहां "विभक्त रस" होता है |इसका स्थाई भाव जुगुप्सा है|
उदाहरण :-
१) "सिर पर बैठो काग, आंखें दोऊ
     खींचहि जींभहि सियार अतिहि आनंद उर धारत |
     गिद्ध जांघ के मांस खोदि-खोदि खात, उचारत हैं |"





२)  "सुडुक, सुडुक घाव से पिल्लू (मवाद) निकाल रहा है,                  नासिका से श्वेत पदार्थ निकाल रहा है| "

शब्दार्थ







             





  

Monday, September 21, 2020

आदर्श बदला (लेखक सुदर्शन)

                 आदर्श बदला 

लेखक सुदर्शन जी का संक्षिप्त परिचय :-

 सुदर्शन जी का जन्म 29 मई 1895 को सियालकोट में हुआ |आप का वास्तविक नाम बद्रीनाथ है |आप प्रेमचंद परंपरा के कहानीकार है | आपका दृष्टिकोण सुधारवादी आदर्शौन्मुख है |आपकी भाषा सरल, स्वाभाविक, प्रभावोत्पादक और मुहावरेदार है | आप का निधन 9 मार्च 1967 को हुआ |

 सुदर्शन जी की कृतियां :-

आदर्श बदला पाठ का सार :-

 सुदर्शन जी की कहानी आदर्श बदला में लेखक ने प्रेमचंद जी की तरह ही आदर्श को बताया है | लेखक की भी सोच आदर्शवादी है | कहानी का मुख्य पात्र बैजू जिसका जीवन संघर्षों से घिरा है परंतु कहानी का अंत सुखद होता है | बदला अर्थात प्रतिकार | मनुष्य का स्वभाव ही होता है बदला लेना ; परंतु अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए यदि कोई बदला लेता है तथा इससे सामने वाले का हृदय परिवर्तन हो जाता है तो वह आदर्श बदला कहलाता है|



मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग :-

१)  तूती बोलना

अर्थ : - अधिक प्रभाव होना   

वाक्य : - भारत में मोदी जी की तूती बोल रही है |

२)  बिलख बिलख कर रोना : -

अर्थ  : - फूट फूट कर रोना , जोर जोर से रोना 

वाक्य : - जवान बेटे की मौत पर बूढ़ी माँ बिलख - बिलख कर रोने लगी |

३)  वाह-वाह करना : -

अर्थ : -  प्रशंसा करना 

वाक्य : - काजल का 12वीं में प्रथम स्थान आने पर सब उसकी वाह-वाह करने लगे |

४)  समाँ बंधना : -

अर्थ  : - वातावरण निर्माण होना ; रंग जमाना 

वाक्य : - तानसेन ने अपनी गायकी से महफिल में समाँ बांध दिया |

५)  लहू सुखना : -

अर्थ : -  डर जाना ; भयभीत हो जाना 

वाक्य : - श्री कृष्ण के यमुना नदी में गिर जाने की बात सुनकर यशोदा मैया का लहू सूख गया |

६) ब्रह्मानंद में लीन होना 

अर्थ : - अत्यधिक आनंद होना ; अलौकिक आनंद का अनुभव करना 

वाक्य :-  वनवास से लौट आने पर लक्ष्मण को देख उर्मिला ब्रह्मानंद में लीन हो गई |

७)  कंठ भर आना : - 

 अर्थ : - भावुक हो जाना 

वाक्य  : - विदेश से वर्षों बाद लौटे बेटे को देखकर मां का कंठ भर आया |

 

८)  जान बख्शना : -

अर्थ : -  जीवन दान देना ; प्राणों की रक्षा करना 

वाक्य : -  पुलिस ने चोरों को चेतावनी देकर उनकी जान बख्श दी |

 स्वाध्याय :-

 आकलन 

कृति पूर्ण कीजिए :-  

१) अ)  साधुओं की एक स्वाभाविक विशेषता - ------- 

उत्तर :- साधुओं की एक स्वाभाविक विशेषता....

 साधुओं के अनुसार मन चंचल होता है बिना काम के वह भटकने लगता है इसीलिए मन को भक्ति की जंजीरों में जकड़ देना चाहिए|

आ)   लिखिए :-

१) आगरा शहर का प्रभात कालीन वातावरण -

 उत्तर:-  आगरा में सुबह आसमान से बरसती हुई प्रभात की किरणें नवीन जीवन की वर्षा कर रही थी इस खुशी में में फूल झूम रहे थे ,पत्ते ताली बजा रहे थे, पक्षी मीठे गीत गा रहे थे चारों ओर खुशियां खुशियां थी |

२) साधुओं की मंडली आगरा शहर में यह गीत गा रही थी  -

 उत्तर :- "सुमर - सुमर भगवान को 

             मूरख मत खाली छोड़ इस मन को "

 शब्द संपदा :-

 लिंग बदलो :-

१)  साधु - साध्वी         २) नवयुवक - नवयुवती 

३) महाराज - महारानी   ४)  दास - दासी 


 अभिव्यक्ति :- 

 ३)  अ)' मनुष्य के जीवन में अहिंसा का महत्व' इस विषय पर अपने विचार लिखिए|

उत्तर :- जब भी कभी अहिंसा पर चर्चा होती है तब सर्वप्रथम गांधीजी और गौतम बुद्ध का स्मरण हो जाता है | अहिंसा पर वेदव्यास जी कहते हैं-"अहिंसा परम धर्म है ,अहिंसा परम संयम है ,अहिंसा परम धर्म है ,अहिंसा परम यज्ञ है ,अहिंसा परम मित्र हैं और अहिंसा परम सुख है |" आज के परिवेश में कुछ लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर एक दूसरे की जान लेने पर उतारू हो जाते हैं |मनुष्य को सदा स्मरण रहना चाहिए कि हिंसा से आज तक किसी का ना भला हुआ है ना ही होगा| तत्कालीन से हम देखते आ रहे हैं कि जब-जब भी हिंसा हुई है तब-तब धर्म का पतन हुआ है |रामायण ,महाभारत आदि ग्रंथों को हम देखकर अनुमान लगा सकते हैं कि अहिंसा से मनुष्य अपनी मृत्यु के द्वार स्वयं ही खोलता है |अतः मनुष्य को हमेशा इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वे अहिंसा का मार्ग खुद भी अपनाए और दूसरों को भी अपनाने के लिए प्रेरित करें ;इस मार्ग में सफलता भले ही थोड़ी देरी से मिले पर मिलती जरूर है |अहिंसा का मार्ग अपनाने में किसी की भी हानि नहीं होती और व्यक्ति प्रसन्न रहता है|

आ) 'सच्चा कलाकार वह होता है जो दूसरों की कला का सम्मान करता है', इस कथन पर अपना मत व्यक्त कीजिए|

उत्तर :- 












 






 






Thursday, September 17, 2020

भारत देश का चाय वाला



          

                          


 सुबह उठते से ही ,

हम जिस चीज की राह देखते हैं 

वो है अखबार व उसके साथ चाय की चुस्कियां

सुबह उठते से ही जो हमारी इच्छा पूरी कर देता हैं

ऐसा चाय वाला ही हमारे भारत देश का नेता हैं

देखे गर आंख उठा कर उसके भारत देश को 

तो लट्ठ उठाकर चौकीदार बन जाता हैं 

मां दुर्गा के शेर पर बैठकर राम मंदिर बनवाता हैं 

लोगों की आस्था का ध्यान रखकर हर्षोल्लास से खिल जाता हैं

  हां ऐसा चाय वाला ही हमारे भारत देश का नेता हैं

खो रही भारत की अस्मिता को प्राण पन से बचाता हैं

क्या करेगा अगले ही पल कोई समझ नहीं पाता हैं 

कई कौरव खड़े हैं सामने,उसे हराने के लिए,उसे गिराने के लिए

हैं डटकर खड़ा अकेला श्री कृष्ण के साथ सामना करने के लिए

जो केवल भारत के उत्थान का सपना देखता हैं

 हां ,ऐसा चाय वाला ही हमारे भारत देश का नेता हैं

जो चायवाला चायवाला कह कर उसकी खिल्ली उड़ाता हैं 

क्या उसने कभी सोचा है ...वह चाय तो सर उठा कर परोसता हैं

 लेकिन पीने वाला सर झुका कर चाय पीता हैं

हां ऐसा चाय वाला ही हमारे भारत देश का नेता हैं 

हां ऐसा चाय वाला ही हमारे भारत देश का नेता हैं

आदरणीय मोदी जी को जन्मदिन की कोटि कोटि शुभकामनाएं






Friday, August 21, 2020

आरती शंकर भगवान की







aarti karo hari har ki karo, natwar ki bhole shankar ki

aarti karo shankar ki, aarti karo hari har ki karo
natwar ki bhole shankar ki, aarti karo shankar ki

sar par shashi ka mukut savare, taro ki payal jhankare
sar par shashi ka mukut sakare, taro ki payal jhankare
dharti ambar dole tandaw lila, ke natwar ki
aarti karo shankar ki, aarti karo hari har ki karo
natwar ki bhole shankar ki, aarti karo shankar ki

kanika har pahnane wale, shambu hai jag ke rakhwale
kanika har pahnane wale, shambu hai jag ke rakhwale
sakat chara char ag jag nati, ungi par vish dharke
aarti karo shankar ki, aarti karo hari har ki karo
natwar ki bhole shankar ki, aarti karo shankar ki

mahadev jai jai shiv shaknar, jai shiv shankar jai shiv shankar
jai ganga dhar jai damru dhar, jai ganga dhar jai damru dhar
he devo ke dev mita do, tum vipda ghar ghar ki
aarti karo hari har ki karo, natwar ki bhole shankar ki
aarti karo shankar ki, aarti karo hari har ki karo
natwar ki bhole shankar ki, aarti karo shankar ki


हरतालिका तीज कथा-

लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। 
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है। 




Wednesday, July 1, 2020

ashadhi Ekadashi



                       


जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में हर त्यौहार के पीछे कोई ना कोई कहानी जुड़ी होती है |उसका कोई ना कोई पौराणिक महत्व होता है और क्यों ना हो भारत ही एक ऐसी भूमि है जहां पर सभी पुण्य महात्माओं ,ऋषि, साधु- संत, मुनि भगवान आदि सब ने इसी भूमि पर जन्म लिया है अतः यह स्वाभाविक है कि प्रत्येक त्यौहार के पीछे कोई ना कोई कथा अवश्य जुड़ी हुई होती है उसका कोई ना कोई अपना पौराणिक महत्व होता है |आज आषाढ़ी एकादशी इस त्यौहार के पीछे भी पौराणिक महत्व है |

आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है।

 इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।

इस त्यौहार का पौराणिक महत्व :-


पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यन्त (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को 'देवशयनी' तथा कार्तिकशुक्ल एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कारविवाहदीक्षाग्रहणयज्ञगृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। भविष्य पुराणपद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है।
संस्कृत में धार्मिक साहित्यानुसार हरि शब्द सूर्यचन्द्रमावायुविष्णु आदि अनेक अर्थो में प्रयुक्त है। हरिशयन का तात्पर्य इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही द्योतक होता है। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण या सो जाती है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि कि चातुर्मास्य में (मुख्यतः वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका कारण है।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता ४-४ माह सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते |

 4 माह तक यह ना करें:- 
जब प्रभु  विश्राम करते हैं अर्थात 4 महीने तक सोते हैं उस समय हमें चाहिए कि संपूर्ण मांगलिक कार्य आदि को टालना चाहिए तथा इस समय हमने हमारे चित्त को पूजा पाठ में लगाना चाहिए अनेक त्यौहार आते हैं उस त्योहार का महत्व समझ कर उसे हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए|

 आषाढी एकादशी में पूजा करने की विधि :-
देवशयनी एकादशी व्रतविधि एकादशी को प्रातःकाल उठें। इसके बाद घर की साफ-सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएँ। स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें। तत्पश्चात व्रत कथा सुननी चाहिए। इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें। अंत में सफेद चादर से ढँके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए। व्यक्ति को इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि अथवा अभीष्ट के अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थों का त्याग और ग्रहण करें।

ग्रहण करें
देह शुद्धि या सुंदरता के लिए परिमित प्रमाण के पंचगव्य का। वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध का। सर्वपापक्षयपूर्वक सकल पुण्य फल प्राप्त होने के लिए एकमुक्त, नक्तव्रत, अयाचित भोजन या सर्वथा उपवास करने का व्रत ग्रहण करें।

हमारी आने वाली जो भावी पीढ़ी है वह कई सारे त्यौहारों से अनभिज्ञ रहती है | यह हमारा कर्तव्य है कि हमने यह जो हमारे संस्कार है व्रत कथा आदि है उसको कहानी, लेखन या अन्य किसी माध्यम से उन तक पहुंचाना चाहिए |उनको यह सारी चीजें बताना चाहिए इससे हमारी भारतीय संस्कृति की जो धरोहर है वह सुरक्षित भी रहेगी और पीढ़ी दर पीढ़ी जिस तरह से बढ़ती आई है आगे भी बढ़ती रहेगी |

आप सबको एकादशी आषाढी एकादशी की शुभकामनाएं
                 
                      "घर पर रहे स्वस्थ रहे"


Saturday, June 27, 2020

तसल्ली








                     
यह मत सोचो कि कार्य करना बहुत बाकी है, यह सोचो कि अच्छा हुआ कम से कम हमारा इतना कार्य तो हो गया|मुसीबत में व्यक्ति ने आशा के सहारे ही समय निकालना चाहिए| 

Saturday, June 20, 2020

original " Aadhar card "

बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करना पिता का फर्ज है ,
तो
बुढ़ापे में उनकी लाठी बनना हमारा परम कर्तव्य है |
वे हमारे A. T. M. CARD  बन सकते हैं ,
तो
 हमें भी उनका AADHAR CARD बनना चाहिए|
हमारे जन्म पर वह खुश होते हैं ,
लेकिन
जीते वे तब है जब हम उनके बुढ़ापे का सहारा बनते हैं |

                             🖊 प्रा. पायल जायसवाल

  

Wednesday, June 3, 2020

एक शाही पशु

क्या तो हम रास्ता देख रहे हैं कि कब-कब गणेश जी आते हैं और वे विघ्नहर्ता हमारे दुखों को हर लेते हैं; लेकिन केरला के मल्लपुरम में हुई इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली, मानव को मानवता से दूर ले जाने वाली  घटना ने हमें अंदर तक झकझोर कर रख दिया है|




 भारत में हर पशु-पक्षी, जानवर ,नदी आदि सब में हम भगवान का रूप ना केवल मानते हैं बल्कि देखते भी है ,महसूस भी करते हैं और उन्हें पूजते भी है| जानवरों को मारना उनके साथ छेड़छाड़ करना वैसे भी कानूनी अपराध है और वह भी हाथी जैसे शांत स्वभाव व मुक जीव जो कि केवल एक नहीं बल्कि दो जीव का था, उसके साथ ऐसा क्रूर व्यवहार!!

इंसान अगर जंगल में भटक जाए तो उसे पानी मिलेगा ताकि वह पीकर प्यास बुझा सके ,जंगल में छाया मिलेंगी जिससे इंसान की थकान दूर होगी ,खाने के लिए फल मिलेंगे जिससे उनकी भूख मिट सके| जंगल में भी कोई जानवर सामने से आकर तब तक हम पर प्रहार नहीं करता जब तक हम  उनके साथ छेड़छाड़ या परेशान ना करें करें|

भूख - प्यास से व्याकुल मादा हाथी जब खाने को तलाशते हुए गलती से मानव बस्ती में आ जाती है तो कुछ असामाजिक तत्व उसके साथ इस तरह का दुर्व्यवहार करते हैं कि उन्हें अनानास में फटाके भरकर उस गर्भवती माता को खिला देते हैं और वह पेट भरने के लिए उस फल को ग्रहण करती हैं और जब पटाखे फूटते हैं तो वह इतनी बुरी तरह जख्मी हो जाती है कि वह जंगल की ओर लौटकर नदी में उतर जाती हैं |अपना मुंह पानी में डाल देती है ताकि शायद पानी में मुंह डालने से उसे आराम मिलने वाला था|





हाथी 113 लीटर पानी पी जाने वाला हाथी आज अपने  मुंह की जलन को शांत करने के लिए पानी में डूबा है और शायद मौत का इंतजार कर रहा है |

वैसे तो यह जंगलों में रहता है लेकिन उचित शिक्षा यदि उसे दी जाए तो वह पालतू जानवर के रूप में भी जाना जा सकता है |कई सारे सर्कस वाले इसे अपने शो में सम्मिलित करते हैं ताकि वह दर्शकों का मनोरंजन कर सके |हाथी भी उनकी कसौटी पर खरा उतरता है और सबको अपने हैरतअंगेज कारनामे दिखाकर चकित कर देता है|


 जहां बच्चे  खिलौने के भालू को देखकर डर जाते हैं वहीं पर इतने बड़े गजराज को देखकर वे उन्हें अजीब- सी प्रसन्नता  मिलती हैं| वे उन्हें देखकर ही मचल उठते हैं, वे उनके साथ खेलने के लिए, हाथ लगाने के लिए उछल पड़ते हैं| 

पुराने जमाने में राजा महाराजा इस पर सवारी करते थे |युद्ध पर जाने के लिए तथा शिकार पर जाने के लिए भी हाथी पर बैठकर जाते थे |हाथी पर बैठना शाही अंदाज़ माना जाता था और आज भी यह अंदाज मौजूद हैं | अतः यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हाथी को शाही पशु भी कहा जाता है|


 हाथी के चार पैर मानो चार स्तंभों का आभास  कराते हैं |यह भारी सामान उठाने में भी इंसान की मदद करते हैं |हाथी जीते जी तो हम सभी के काम आता है लेकिन अपनी उम्र  पूर्ण करने के बाद जब वह मर जाता है तब भी वह मानव के लिए बहुत उपयोगी होता है |





हाथी को पानी में उतरना ,अपनी सुंड से पानी खींच कर फव्वारे की भांति हवा में उड़ाना आदि बहुत पसंद आता है |परंतु केरल में हुई इस क्रूरता की शिकार मादा हाथी ने भूखे प्यासे ही अपने शिशु जोकि जन्म भी नहीं लिया था के साथ पानी में ही अपने प्राण त्याग दिए |


Monday, June 1, 2020

एक नेता का फूल पर भाषण

महाविद्यालय में "हिंदी दिवस " का आयोजन किया गया था उस समय एक छात्रा ने यह कविता सुनाई थी | इस LOCKDOWN के चलते जब मैं घर की सफाई कर रही थी तब पुरानी किताबों के बीच में मुझे उसके द्वारा लिखी हुई यह कविता मिली जो मैं प्रस्तुत कर रही हूं : -

फूल : - फूल दो प्रकार के होते हैं ,एक गोभी का और एक गुलाब का |

गोभी : -  गोभी जिसमें 385 प्रकार के विटामिन होते हैं और.                गुलाब जिससे गुलकंद बनता है |

गुलकंद : -  गुलकंद जो खासी की जड़ है |

 जड़ : -     जड़ तो खरबूजे की मजबूत होती है |

 खरबूजा : -  खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है |

रंग :-  रंग तो जर्मन का पक्का होता है |

 जर्मन  :- जहां हिटलर राजा राज करते थे उन्होंने वर्ल्ड वॉर किए थे

वार  :- वार तो सात प्रकार के होते हैं |सोमवार मंगलवार बुधवार गुरुवार शुक्रवार शनिवार इतवार |

 इतवार  :- जो सेहत के लिए नुकसानदायक है |

नुकसान  :- आन तो महबूब खान ने बनाई थी |

खान  :- खान तो चार प्रकार की होती है, कोयले की खान हीरे की खान सलमान खान और शाहरुख खान |
शाहरुख खान  :- शाहरुख खान जो हिंदी फिल्में टॉप का हीरो है |

टॉप  : - टॉप तो दो प्रकार की होती है एक लड़की अपने सैंडल में लगा कर चलती है , घोड़ा अपने पैरों में लगाकर दौड़ता है |

घोड़ा  :- घोड़ा वही जो गंगा जमुना की रेल के साथ दौड़ा था |

गंगा -जमुना  :- गंगा - जमुना जो इलाहाबाद में बहती है |

इलाहाबाद  :- जहां नेहरू के पिता मोतीलाल का जन्म हुआ था |मोतीलाल और रामदास ने मिलकर कमाल किया था |

कमाल :+ कमाल तो नूतन के पति का नाम है|
 पति रे ! पति ! लंकापति रावण!  सीता हरण|
         
जय हिंद !जय भारत! 

Saturday, May 30, 2020

पिता

   
                                पिता

            है पिता चिंतित कर्ण के लिए,
और एक पिता भी चिंतित है अर्जुन के लिए|

            चिंतित सूर्यदेव आज नहीं देना चाहते दर्शन ,
जानते हैं वे कि इसी में है कर्ण का रक्षण |

            हो अगर सूर्य उदय ; छल द्वार पर आएगा ,
पुत्र अर्जुन की खातिर स्वयं पर लांछन लगवाऐगा |

           दोनों देव हैं, दोनों देवता के प्रसाद हैं,
पर जीतेगा वही जिसके दीनानाथ है|

           सब अलग होता गर भाई-भाई मिल जाते ,
ऐसे पुत्रों को प्राप्त कर पिता गर्व से हर्षाते |

           पर पिता की विडंबना कौन समझ पाया है ?
उसने तो सामने कठोर और अकेले में आंसू बहाया है |


           कहते हैं ,माता ही ममता की मूरत होती है,
 पर पिता को भी बच्चों की चिंता होती है|

           मां के आंसू को सबने जाना है ,
पर क्या पिता की घुटन को किसी ने पहचाना है ?
   
   
     -प्रा. पायल जायसवाल

Thursday, May 28, 2020

नवनिर्माण {कविता} भावार्थ एवं शब्दार्थ

                       

      1.  नवनिर्माण

(कवि त्रिलोचन जी )
                       



                            





 चतुष्पद - १

तुमने विश्वास दिया है मुझको,
मन का उच्छ्वास दिया है मुझको|
मैं उसे भूमि पर संभालूंगा ,
तुमने आकाश दिया है मुझको |


शब्दार्थ :

 उच्छ्वास - आह भरना , (यहां पर जीवन )
भूमि - धरा , धरती
आकाश - अंबर


भावार्थ :


कवि त्रिलोचन जी इस कविता के माध्यम से आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए कहते हैं कि हमारा जन्म इस पृथ्वी पर हुआ है उसके पीछे कोई ना कोई उद्देश्य है| कवि कहना चाहते हैं कि एक अलौकिक शक्ति जिसे हम भगवान कहते हैं या अल्लाह कहते हैं या प्रकृति ,चाहे जो कह लो , हमें जो जन्म मिला है वह कुछ उद्देश्य पूरा करने के लिए मिला है| जिस तरह आकाश कितना बड़ा होता है हम उसको गिन सकते हैं क्या ?नाप सकते हैं क्या ?नहीं माफ सकते क्योंकि वह असीम है ,बहुत बड़ा है |ठीक उसी तरह कई अनगिनत उद्देश्य है हमारे जन्म के पीछे ; तो हमें उस उद्देश्य को पूरा करना है |हमारे इसी उद्देश्य को पूरा करने पर क्या होगा ; समाज एक नई दिशा की ओर मुड़ेगा | समाज को नई दिशा प्रदान करने के लिए प्रकृति ने बोलो या ईश्वर ,भगवान चाहो जो बोलो उन्होंने हमको इस पृथ्वी पर भेजा है ताकि हम एक नए समाज का निर्माण कर सकें|
उपर्युक्त पंक्ति में कवि त्रिलोचन जी का हमें समाज की ओर आशावादी दृष्टिकोण नज़र आता है|

 चतुष्पद - २

२)   सूत्र यह तोड़ नहीं सकते है|
तोड़कर जोड़ नहीं सकते है |
व्योम में जाए, कहीं भी उड़ जाए ,
 इस भूमि को छोड़ नहीं सकते  हैं |

 शब्दार्थ :


व्योम -  आसमान , आकाश

भूमि - धरा , धरती


 भावार्थ :

कवि त्रिलोचन की कहना चाहते हैं कि सृष्टि में जो चीज का भी  निर्माण हुआ है उसके साथ हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते है |
जिस प्रकार किसी भी चीज को हमें तोड़ना नहीं चाहिए ,संभाल कर रखना चाहिए, फिर चाहे वह रिश्ता हो या कुछ और हो | जैसे हम अपने रिश्ते को संभाल कर रखते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि वह टूटना नहीं चाहिए |अगर मान लीजिए टूट जाता है तो क्या होगा? पुनः वह रिश्ता जुड़ नहीं पाएगा और अगर जुड़ भी जाता है तो रिश्तो में खटास आ जाती है|
अत: सृष्टि का नियम है कि जो चीज जैसी है , उसे वैसे ही उसे सुरक्षित रखना है और अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो वह टूट जाएंगी और टूटी हुई चीज कभी जुड़ सकती नहीं है |
कवि आगे कहते हैं कि जैसे ही हमारा जन्म होता है हमारा नाता इस पृथ्वी से जुड़ जाता है ,इस धरती से जुड़ जाता है और चाह कर भी हम उसे तोड़ नहीं सकते हैं इसीलिए हम कहीं भी चले जाए दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं हम मातृभूमि से हमेशा जुड़े हुए ही रहेंगे और यही सत्य है |


 चतुष्पद ३

 सत्य है राह में अंधेरा है ,
रोक देने के लिए घेरा है |
काम भी और तुम करोगे क्या ,
बढ़े चलो सामने अंधेरा है |


 शब्दार्थ : -


सत्य = सही
 घेरा = रुकावट
अंधेरा = अंधकार (यहां पर मुसीबत)

भावार्थ :-


यह एक चतुष्पद विधा का काव्य है |
कवि त्रिलोचन जी कहना चाहते हैं कि हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिस मार्ग पर चलना हैं, उस मार्ग पर अंधेरा है |अंधेरा से यहां पर कवि मुसीबत से लेते हैं वे कहते हैं कि हमको लक्ष्य प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और हम अपने लक्ष्य को प्राप्त ना कर सके इसीलिए अनेक समस्याएं हमें घेर लेगी लेकिन हमें उन समस्याओं को पार करते  हुए ,जूझते हुए अपने मार्ग पर सतत बढ़ते रहना है |

कवि कहना चाहते हैं कि अगर हम चुनौतियों का सामना नहीं करेंगे तो हम क्या करेंगे ?खाली तो हम बैठ सकते नहीं हैं |कोई भी चीज यदि हम को आसानी से मिल जाती है तो हमें उस चीज की कीमत रहती नहीं है |उस चीज का हम मूल्य समझते नहीं हैं| कोई चीज अगर मेहनत करके मिलती है तो हम उसको बहुत अच्छे से रखते हैं और उसकी कीमत को भी अच्छी तरह से समझ सकते हैं ;इसीलिए बिना मेहनत के हमको कुछ मिलने वाला नहीं है हमको लगातार अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मार्ग में आने वाली चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते चले जाना है और सामने जो अंधेरा है उसको भी पार कर कर आगे बढ़ना है ताकि हमको हमारी मंजिल मिल जाए |


 चतुष्पद ४

बल नहीं होता सताने के लिए ,
वह है पीड़ित को बचाने के लिए|
 बल मिला है तो बल बनो सबके ,
 उठ पड़ो न्याय दिलाने के लिए |

 शब्दार्थ :-

बल = ताकत
सताना = दूसरों को परेशान करना
पीड़ित = तकलीफ को सहने वाला

भावार्थ :-


 मनुष्य को अपना कर्तव्य समझाते हुए कवि त्रिलोचन जी कहते हैं कि व्यक्ति अगर बलशाली है तो उसने अपने बल का प्रयोग उचित जगह करना चाहिए | उसने हर निर्बल व्यक्तियों की रक्षा करनी चाहिए कहने का तात्पर्य यह है कि हर व्यक्ति के पास बल होता है ; किसी के पास शारीरिक बल यानी बहुत ज्यादा ताकत होती हैं तो किसी के पास बौद्धिक बल होता है , दिमाग से कोई - कोई बहुत चतुर या होशियार होता है |

 यहां पर कवि यह संदेश दे रहे हैं कि भगवान ने जो हमें ताकत दी है चाहे वह शरीर की ताकत हो चाहे वह दिमाग की ताकत हो ; तो उसका हमें सही प्रयोग करना चाहिए अर्थात जो  पीड़ित व्यक्ति है उसको बचाने के लिए करना चाहिए |निर्बल व्यक्ति के ऊपर हमें अपना शारीरिक बल या बौद्धिक बल आजमाना नहीं चाहिए | इससे उसको हानि पहुंच सकती है ,क्षति पहुंच सकती है |भगवान ने हम को जो ताकत दी है , जो शक्ति दी है हमें जो बल दिया है उसका प्रयोग दूसरों को सताने के लिए नहीं करना चाहिए बल्कि पीड़ितों को बचाने के लिए करना चाहिए |भगवान द्वारा प्राप्त बल के माध्यम से हमें सब की ताकत बनना है और  जिस पर अन्याय हो रहा है उसको हमें न्याय दिलाने के लिए मदद करना चाहिए यही हमारा कर्तव्य है |



चतुष्पद ५


जिसको मंजिल का पता रहता है ,
पथ के संकट को वही सहता है |
एक दिन सिद्धि के शिखर पर बैठ ,
अपना इतिहास कहता है |

 शब्दार्थ :-

 मंजिल = लक्ष्य
संकट =विपत्ति
पथ = मार्ग ,रास्ता
सिद्धि = सफलता
शिखर = पर्वत की चोटी

 भावार्थ :-

कवि त्रिलोचन जी मनुष्य को आशावादी रहने का आवाहन देते हुए कहते हैं कि जिस व्यक्ति को अपनी मंजिल दिखाई देती है वह सर्वप्रथम कई कष्टों को ,बाधाओं को पार करते हैं|

सफलता का मार्ग अति 
कंटकमयहोता है |यहां कवि मनुष्यों का हौसला बढ़ाते हुए उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि सच्चा मनुष्य वहीं है जो सफलता के मार्ग में आने वाली समस्याओं का डटकर सामना करता है | संकटों की शरण ना जाकर विघ्नों को गले लगाते हुए सही मायने में वही व्यक्ति सफलता का अधिकारी हो जाता है |

कवि आगे कहते हैं कि जो भी मनुष्य इस विषम परिस्थितियों से लड़ता है वही एक दिन सफलता के शिखर को पा लेता है | इस शिखर को पाने के लिए उसने कितने बलिदान दिए , कितनी तकलीफें उठाई ऐसी प्रेरणा वह अन्य लोगों को भी देते हैं और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं |
इस प्रकार मनुष्य को कवि ने हमेशा जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण रखने का संदेश इस चतुष्पद पद में दिया है|





चतुष्पद  ६  : -

प्रीति की राह पर चले आओ ,
नीति की राह पर चले आओ |
वह तुम्हारी ही नहीं , सबकी है ,
गीति की राह पर चले आओ |


 शब्दार्थ : -


प्रीति =प्रेम 
नीति = व्यवहार का ढंग
गीति = गान ,गीत


भावार्थ :-


इस चतुष्पद में कवि त्रिलोचन जी सभी से प्रेम के मार्ग को अपनाने का आवाहन करते हैं | उनका कहना है कि समाज में रहना है तो हमें सभी के साथ मिल-जुल कर प्रेम पूर्वक रहना चाहिए| इस तरह मित्रता पूर्ण व्यवहार में रहेंगे तो हमारा जीवन बहुत सरल एवं व अच्छा हो जाएगा |

कवि का तात्पर्य है कि यदि हम सब के साथ प्रेम पूर्ण ढंग से व्यवहार करेंगे तो सामने वाला भी हमसे उसी तरह पेश आएगा | इससे हममें एकता नजर आएगी और बहुत ही खुशी- खुशी अर्थात हंसते -गाते हमारा जीवन आगे बढ़ता जाएगा |



चतुष्पद ७ :-

साथ निकलेंगे आज नर-नारी ,
लेंगे कांटों का ताज नर-नारी|
दोनों संगी है और सहचर है,
अब रचेंगे समाज नर नारी|


शब्दार्थ :-


सहचर =  साथ -साथ चलने वाला, सहगामी 
रचना   =  निर्माण करना

भावार्थ :-

इस चतुष्पद में कवि ने स्त्री और पुरुष के अंतर को मिटाकर उनमें समानता ही है इस बात को बताया है | कवि त्रिलोचन जी कहते हैं कि जिस तरह से एक साइकिल के दो पहिए होते हैं तभी वह साइकिल बराबर चलती हैं, स्त्री -पुरुष भी उसी साइकिल के चक्के की तरह होते हैं अर्थात समाज का निर्माण या विकास नर और नारी दोनों मिलकर करते हैं | वे दोनों एक दूसरे के पूरक है| 

स्त्री - पुरुष में समानता की भावनाओं को स्पष्ट करते हुए कवि कहते हैं कि यदि स्त्री और पुरुष एक साथ मिलकर कार्य करें तो सामने कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न हो वह जल्दी से दूर हो जाती है | कवि कहते हैं कि अब समय आ गया है कि स्त्री और पुरुष दोनों साथ- साथ में कार्य कर समाज को एक नई दिशा प्रदान करेंगे ,एक नई गति प्रदान करेंगे|




चतुष्पद ८ :-

वर्तमान बोला,अतीत अच्छा था,
प्राण के पथ का मीत अच्छा था |
गीत मेरा भविष्य गाएगा,
यो अतीत का भी गीत अच्छा था|


शब्दार्थ :-


वर्तमान  = समय जो अभी चल रहा है 
अतीत   =  बीता हुआ कल 
पथ       = रास्ता ,मार्ग ,राह
मीत      =  मित्र 
भविष्य  = आने वाला कल


भावार्थ :-

इस चतुष्पद पद में कवि कहते हैं कि मनुष्य अपने वर्तमान अर्थात आज में न जीते हुए अपने अतीत में वह जीता है या भविष्य को संवारने के सपने देखता है| कवि यहां यह कहना चाहते हैं कि जो समय बीत गया वह हमारे हाथ में नहीं रहा तथा
भविष्य अपने समय के अनुसार आएगा वह अभी हमारे हाथ में नहीं है; हमारे हाथ में यदि है तो वह है वर्तमान...| कवि कहते हैं कि हमें अपने वर्तमान में जीना चाहिए|

समय के महत्व को स्पष्ट करते हुए कवि कहना चाहते हैं कि हमें अतीत का समय अच्छा लगता है क्योंकि उसमें बहुत अच्छे- अच्छे मित्र हमको मिले थे लेकिन कवि यह कहना भी चाहते हैं कि अभी जो वर्तमान चल रहा है वह अतीत में बदल जाएगा तब वह हम को अच्छा लगने लगेगा | इसलिए हमने वर्तमान को भी पसंद करना चाहिए| इसी तरह से हमारा आने वाला कल अर्थात हमारा भविष्य भी सुनहरा ही होगा|




नवनिर्माण कविता का रसास्वादन :-