रस
परिचय
रस का शाब्दिक अर्थ निचोड़ होता है |किसी कविता ,कहानी ,उपन्यास आदि को पढ़कर, सुनकर या देखकर उसके प्रति हमारे हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है उसे रस कहते हैं |जैसे चुटकुला सुनकर हंसना ,किसी भयानक दृश्य को देखकर डर जाना आदि सब रस के ही भाव है|
रस की परिभाषा
नाट्यशास्त्र में भरत मुनि ने रस की व्याख्या करते है," विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रस निष्पत्ति:" अर्थात विभाव ,अनुभाव, व्यभिचारी के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है |
१) श्रृंगार रस : -
श्रृंगार रस कवियों का अत्यंत प्रिय रस रहा है| इसका स्थाई भाव प्रेम या रति है |इसके अंतर्गत सौंदर्य प्रकृति, नायक व नायिका अथवा स्त्री-पुरुष के प्रेम-प्रसंग, चेष्टाओं क्रियाकलापों का श्रृंगारिक वर्णन प्रेम, मिलने -बिछड़ने आदि जैसी क्रियाओं का वर्णन होता है वहां "श्रृंगार रस" होता है | इस रस को "रसराज "की उपमा दी गई है |
उदाहरण :-
१) राम के रूप निहारती जानकी, कंकन के नग की परछाई,
यातै सबै सुधि भूली गई, कर टेकि रही पल टारत और नाही|
(कवितावली ,कवि गोस्वामी तुलसीदास) उपर्युक्त पंक्तियां ‘गोस्वामी तुलसीदास’ के ग्रंथ “कवितावली” के ‘बालकांड’ प्रसंग से ली गयी हैं। ये प्रसंग उस समय का है जब श्रीराम और सीता के विवाहोत्सव का कार्यक्रम चल रहा है। सब जन मिलकर मंगलगीत गा रहे हैं। युवा ब्राह्मण एकमेव स्वर में वेदपाठ कर रहे हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में तुलसीदास जी कहते हैं कि सीता प्रभु श्रीराम का रूप निहार रही हैं क्योंकि दूल्हे के वेश में श्रीराम अत्यन्त मनमोहक दिख रहे हैं। जब अपने हाथ में पहने कंगन में जड़ित नग में प्रभु श्रीराम की मनमोहक छवि की परछाई देखती हैं तो वो स्वयं को रोक नही पातीं हैं और एकटक प्रभु श्रीराम की मनमोहक छवि को निहारती रह जाती हैं |
यहां पर राम और सीता के ह्रदय में एक दूसरे के लिए प्रेम उत्पन्न हुआ अत: यहा पर श्रृंगार रस हैं|
उदाहरण :-२)
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलात, खिलत लजियात|
भरे भौन में करत है, नैननू ही सौं बात
-(कवि- बिहारी, बिहारी सतसई दोहा नंबर 62)
शब्दार्थ :-
कहत = कहना
नटत = इनकार करना
रिझत = रिझना ; प्रसन्न होना
खिझत= खिजना
मिलत = मिलना
खिलत = खिल जाना
लजियात = शर्माना
भौन = भवन ; महल
नैननू = नेत्र से ;आंखों से
कवि बिहारी जी कहना चाहते हैं कि एक ज़माना था जहां पर बड़े-बूढ़ों की उपस्थिति में पति -पत्नी या स्त्री पुरुष का आपस में बात करना गलत समझा जाता था| ऐसे माहौल में जहां बड़े बुजुर्ग है वहॉ नायक व नायिका की चेष्टाओं का वर्णन किया गया है| वर्णन इस प्रकार है -
बड़े बुजुर्गों से भरा हुआ घर का वातावरण है ऐसे में पति-पत्नी दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर पाते हैं ,अतः वे दोनों इशारों में ही एक दूसरे से बात करते हैं |नायक अर्थात पति अपनी नायिका अर्थात पत्नी से मिलने के लिए आंखों के इशारे से कहता है ,वहीं पर पत्नी शर्मा कर बड़े ही भोलेपन से मिलने से इंकार करती है उसकी इनकार पर पति रीझ जाता है |पति का रिझना देखकर पत्नी खींचने का नाटक करती है |इस तरह से दोनों की नजरें मिलती है ,नजरों ही नजरों में दोनों एक दूसरे से मिलन कर लेते हैं और मिलने के पश्चात वे दोनों खिल उठते हैं |
इस तरह से कवि बिहारी ने बड़े सुंदर ढंग से नायक - नायिका व उनके द्वारा किए गए नेत्रों से इशारे का बड़े सुंदर ढंग से वर्णन किया है|
यहां पर नायक- नायिका के बीच में जो रति निर्माण हुई है वह श्रृंगार रस है |
श्रृंगार रस के अन्य उदाहरण :-
२) "मैं इन सब के परे अपलक तुम्हें देख रही हूं
हर शब्द अंजूरी बनाकर, बूंद-बूंद तुम्हें पी रही हूं
और तुम्हारा तेज मेरे जिस्म के एक - एक मूर्छित संवेदन को धधक रहा है |"
(युवकभारती कक्षा बारहवीं, कनुप्रिया पृष्ठ संख्या ७७)
२) "मेरे तो गिरधर गोपाल ,दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट ,मेरो पति सोई |"
शांत रस :-
शांत रस की परिभाषा :- तत्व ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर शांत रस की उत्पत्ति होती है |जहां ना दुख है ,न सुख, न द्वेष , न राग और न कोई इच्छा है ऐसी मनोस्थिति में उत्पन्न रस को "शांत रस" कहते हैं |इसका स्थाई भाव शांति अनिर्वेद है|
उदाहरण :-
"माला फेरत जुग भया ,गया न मन का फेर |
कर का मनका डारि कै, मन का मनका फेर ||
(-संत कबीर दास जी )
शब्दार्थ :-
फेरत= घुमाना
जुग भया= युग बिता दिए
कर = हाथ
मनका = भगवान के नाम जपने की रुद्राक्ष की माला
दोहे का भावार्थ :-
कबीर दास जी कहना चाहते हैं कि हम भगवान का नाम लेते हैं और माला को घुमाते रहते हैं ताकि हमारा मन शुद्ध हो जाए , शांत हो जाए लेकिन ऐसा करने पर भी हमारा मन शुद्ध नहीं होता है क्योंकि और इसी तरह से माला को घुमाते -घुमाते कई युग बीत गए लेकिन हमारे मन की हलचल या उथल-पुथल शांत नहीं हुई क्योंकि केवल ईश्वर का नाम लेने से हमारा मन शांत नहीं होगा ; हमारा मन शांत तब होगा जब हम अपने विचारों में शुद्धता लाएंगे |अपने विचारों पर नियंत्रण रखेंगे |अपने ह्रदय पर नियंत्रण रखेंगे तब ही सही मायने में हमारा मन जो कि विचलित है वह शांत होगा|
उदाहरण :-
२) "माटी कहै कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोहे |
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौदूंगी तोहे ||
शब्दार्थ :-
माटी =मिट्टी
कहे = कहना
कुम्हार = मिट्टी के पात्र बनाने वाला
रौंदे =रौंदना, पैरों से कुचलना
मोहे = मुझको
तोहे = तुझको
दोहे का भावार्थ :-
कुम्हार पात्र बनाने के लिए जब मिट्टी के ऊपर खड़ा होकर उसे चिकना करता है अर्थात उसे अपने पैरों तले रौंदता है तब मिट्टी कहती हैं कि आज तू मुझे रौंद रहा है क्योंकि आज तेरा समय अच्छा है ; लेकिन कल जब तेरा समय खत्म हो जाएगा और तू अर्थात तेरी मृत्यु हो जाएंगी उस समय मैं(मिट्टी) तुझे रौंदूंगी |तेरे अस्तित्व का नाश कर दूंगी |
कबीर दास जी ने यहां पर समय को अधिक महत्व दिया है और कहा है कि इंसान ने कभी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि यह जीवन क्षणभंगुर है| समय बहुत बलवान होता है| वह हर किसी के साथ अच्छा या बुरा नहीं रहता है समय के हिसाब से उसमें परिवर्तन होते रहता है |
शांत रस के अन्य उदाहरण:-
१) " सीता गई तुम भी चले मैं भी ना जिऊंगा यहां ,
सुग्रीव बोले साथ में सब जाएंगे वानर वहां |"
२) "अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी,
आंचल में है दूध और आंखों में पानी |"
( मैथिलीशरण गुप्त ) ३) "हाय रुक गया यही संसार
बना सिंदूर अनल अंगार
वातहत लतिका वह सुकुमार
पड़ी है चिन्नाधार |"
(सुमित्रानंदन पंत)
बीभत्स रस :-
बीभत्स रस की परिभाषा:-
जहां घिनौने पदार्थ को देखकर ग्लानि उत्पन्न हो वहां "विभक्त रस" होता है |इसका स्थाई भाव जुगुप्सा है|
उदाहरण :-
१) "सिर पर बैठो काग, आंखें दोऊ
खींचहि जींभहि सियार अतिहि आनंद उर धारत |
गिद्ध जांघ के मांस खोदि-खोदि खात, उचारत हैं |"
२) "सुडुक, सुडुक घाव से पिल्लू (मवाद) निकाल रहा है, नासिका से श्वेत पदार्थ निकाल रहा है| "
शब्दार्थ
Done
ReplyDeleteGood
DeleteCompleted mam
ReplyDeleteComplete ho gay mam
ReplyDeleteComplete
ReplyDeleteLokesh Khakre
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