Friday, August 21, 2020

आरती शंकर भगवान की







aarti karo hari har ki karo, natwar ki bhole shankar ki

aarti karo shankar ki, aarti karo hari har ki karo
natwar ki bhole shankar ki, aarti karo shankar ki

sar par shashi ka mukut savare, taro ki payal jhankare
sar par shashi ka mukut sakare, taro ki payal jhankare
dharti ambar dole tandaw lila, ke natwar ki
aarti karo shankar ki, aarti karo hari har ki karo
natwar ki bhole shankar ki, aarti karo shankar ki

kanika har pahnane wale, shambu hai jag ke rakhwale
kanika har pahnane wale, shambu hai jag ke rakhwale
sakat chara char ag jag nati, ungi par vish dharke
aarti karo shankar ki, aarti karo hari har ki karo
natwar ki bhole shankar ki, aarti karo shankar ki

mahadev jai jai shiv shaknar, jai shiv shankar jai shiv shankar
jai ganga dhar jai damru dhar, jai ganga dhar jai damru dhar
he devo ke dev mita do, tum vipda ghar ghar ki
aarti karo hari har ki karo, natwar ki bhole shankar ki
aarti karo shankar ki, aarti karo hari har ki karo
natwar ki bhole shankar ki, aarti karo shankar ki


हरतालिका तीज कथा-

लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। 
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है।