Saturday, July 31, 2021

"उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद"


"उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद"


कलम के बेताज बादशाह मुंशी जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही नामक एक छोटे से कस्बे में हुआ था| पारिवारिक परिस्थितियों से गुजरने के पश्चात अपनी पढ़ाई पूरी कर वे मुंशी की नौकरी करते थे , तब से प्रेमचंद जी को लोग "मुंशी प्रेमचंद" कहने लगे|

प्रेमचंद जी का रुझान नौकरी करने से ज्यादा अपनी लेखनी की ओर था | उन्होंने सर्वप्रथम उर्दू भाषा में अपना लेखन कार्य आरंभ किया | उर्दू भाषा में वे  "नवाबराय"  से लिखते थे | उनकी लेखनी काल्पनिक  दुनिया से दूर व यथार्थवादीता के नजदीक थी | यही कारण था की "सोजे वतन" उनकी उर्दू भाषा में लिखी गई पुस्तक में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किया जाने वाला अत्याचार व शोषण को दर्शाया गया था| प्रेमचंद की इस पुस्तक  से अंग्रेज तिलमिला उठे और  उन्होंने "सोजे वतन" को ज़ब्त कर लिया था |

प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम "धनपतराय" था | उन्होंने हिंदी में लगभग 300 से भी अधिक कहानियां लिखी हैं, जो कि मानसरोवर के आठ खंडों में विभाजित की गई है|  "बड़े घर की बेटी" प्रेमचंद जी की हिन्दी की सबसे पहली व मौलिक कहानी है| भारत किसानों का देश है इसीलिए प्रेमचंद जी को भी छोटे-छोटे गांव, कस्बों से लगाव अधिक रहा है | उन दिनों गांव वालों पर हो रहे अन्याय ,असुविधा आदि से वे भली-भांति परिचित थे| गरीब,किसान, मजदूर, श्रमिक आदि वर्ग पर हो रहे जुल्मों को उन्होंने अपनी आंखों से देखा और वैसे ही लिखा | यही कारण है कि आज भी उनकी कहानियों के पात्र जीवंतता का एहसास दिलाते हैं | 'पूस की रात' का हल्कू को हो या कफन के घीसू और माधव, ईदगाह का हामिद हो या 'बूढ़ी काकी' की काकी यह सारे पात्र समाज में किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान है| अत: यह कहने में कोई अत्युक्ति नहीं है कि उन्होंने अपनी लेखनी में यथार्थवाद, आदर्शवाद को स्थान दिया |

सन 1918 में, जी हां लगभग 103 वर्ष पहले उन्होंने 'सेवासदन' नामक प्रकाशित उपन्यास लिखा था| जो कि वेश्यावृत्ति पर आधारित हैं| इसके पश्चात 1920 में 'प्रेमाश्रम' जो कि किसान के जीवन पर आधारित हैं, 1925 में 'रंगभूमि' जो एक अंधे भिखारी को कथा का नायक  बनाकर साहित्य में क्रांतिकारी परिवर्तन  किया गया ,1925 में 'निर्मला'  जोकि बेमेल विवाह  पर आधारित उपन्यास हैं1926 में 'कायाकल्प ' 1927 में 'प्रतिज्ञा' 1928 में 'गबन' 1932 में 'कर्मभूमि' तथा 1936 में  'गोदान' उपन्यास लिखकर प्रेमचंद जी हिंदी साहित्य जगत में "उपन्यास सम्राट" नाम से प्रसिद्ध हो गए | 'मंगलसूत्र' यह प्रेमचंद जी का अंतिम उपन्यास था;परंतु बीच में ही प्रेमचंद जी 8 अक्टूबर 1936 को स्वर्गवास हो जाने से वह उपन्यास अधूरा ही रह गया ,अत: 'गोदान' को ही प्रेमचंद जी का अंतिम पूर्ण उपन्यास माना जाता है| आगे चलकर प्रेमचंद जी के बेटे अमृतराय ने अपने पिता के अधूरे उपन्यास 'मंगलसूत्र' को 1948 में पूर्ण किया | 

प्रेमचंद जी के रचनाओं पर आधारित कई फिल्में व दूरदर्शन पर धारावाहिक आज भी प्रसारित हो रहे हैं|सत्यजित राय ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में बनाईं। १९७७ में 'शतरंज के खिलाड़ी' और १९८१ में 'सद्गति'। उनके देहांत के दो वर्षों बाद सुब्रमण्यम ने १९३८ में 'सेवासदन' उपन्यास पर फ़िल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। १९७७ में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी 'कफ़न' पर आधारित 'ओका ऊरी कथा' नाम से एक तेलुगू फ़िल्म बनाई, जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। १९६३ में 'गोदान' और १९६६ में 'गबन' उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं। १९८० में उनके उपन्यास पर बना टी.वी. धारावाहिक 'निर्मला' भी बहुत लोकप्रिय हुआ था| 

प्रेमचंद जी के संपादन में सन 1930 में बनारस से 'हंस ' नामक पत्रिका निकाली गई थी| मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु के बाद हंस का सम्पादन उनके पुत्र कथाकार अमृतराय ने किया। अनेक वर्षों तक हंस का प्रकाशन बन्द रहा। बाद में मुंशी प्रेमचंद की जन्मतिथि (31 जुलाई) को ही सन् 1986 से अक्षर प्रकाशन ने कथाकार राजेन्द्र यादव के सम्पादन में इस पत्रिका को एक कथा मासिक के रूप में फिर से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। आने वाले वर्षों में यह सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली हिंदी साहित्यिक पत्रिका के रूप में उभरी और आज भी यह हिंदी साहित्य जगत में एक प्रतिष्ठित और विचारशील पत्रिका का स्थान बनाए हुए है। सन् 2013 में राजेन्द्र यादव की मृत्यु के बाद हंस का प्रकाशन और प्रबंध निदेशन उनकी पुत्री रचना यादव द्वारा किया जा रहा है और हिंदी के प्रख्यात कहानीकार संजय सहाय अब हंस के संपादक हैं।


प्रेमचंद जी एक सफल कहानीकार, उपन्यासकार तो थे ही साथ में वे अनुवादक भी रहे | उन्होंने नाटकों की भी रचनाएं की है| हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का स्थान सर्वोपरि है| आने वाली कई भावी पीढ़ियां प्रेमचंद के साहित्य का अध्ययन करेगी| प्रेमचंद हिंदी साहित्य जगत के लिए अनमोल उपहार है|


"मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर सभी साहित्यिक भाई बहनों को  हार्दिक शुभकामनाएं"