Wednesday, May 13, 2020

उर्मिला भी एक नारी थी....

        Pratimimb

                  " URMILA" Bhi Ek Nari thi....

राजभवन में पली-बढ़ी जनक दुलारी सीता को जब हम राम लक्ष्मण के साथ वन - वन भटकते हुए देखते हैं और किस प्रकार सीता जी के कोमल चरणों में काँटा चुभ जाने पर हमारा ह्रदय दहल उठता है कि कितने नाजों से पली सीता जी आज उनकी यह कैसी स्थिति है? इस प्रकार रामायण के अनेक मुख्य तथा  गौण पात्र है, परंतु नारी पात्र में एक ही नाम सामने आता है- सीता ! पर जो पीड़ा ,वेदना , टीस उर्मिला ने सही है उसे बहुत ही सहजता से उपेक्षित किया गया है.


उर्मिला जब लक्ष्मण जी से कहती है कि वह भी उनके साथ वन चलेंगी क्योंकि उर्मिला को यहां बिल्कुल पसंद नहीं था कि वह अपने ससुराल में महलों का सुख भोगे और पति वन -वन भटकते रहें. उर्मिला वन जाने के लिए कहती है तो लक्ष्मण जी समझाते हैं कि वह साथ न चल कर ससुराल में ही रहे तथा सास-ससुर की सेवा करें .उर्मिला की विरह वेदना लक्ष्मण जी भलि-भाँति समझते हैं. वह स्वयं भी उर्मिला पर हो रहे अन्याय से परिचित है तथा लज्जित भी हैं. यह सोचने वाली ही बात है कि जिस कन्या को बचपन में माता-पिता बहनों का स्नेह मिला जो हमेशा भरे -पूरे अर्थात संपन्न परिवार में रही वहां आज ससुराल में आकर एकदम अकेली हो गई है.
14 वर्ष पति की आज्ञा से वह वन जाकर राजभवन में ही ठहरती है तथा घर में सब के रहने पर भी अपने आप को अकेली ही अनुभव करती है. बचपन में माता-पिता बहनों द्वारा मिले प्यार अब उर्मिला को याद आते हैं तथा वह सोचती है कि मुझे जहां मायके में इतना स्नेह मिला ,ससुराल में पति का सुख तो दूर उनके दर्शन मात्र को भी तरसती है .उसे अपना जीवन बोझ- सा लगने लगता है .वह सोचती है कि क्या वह यह सोच कर आई थी कि मायके के समान उसे ससुराल में भी बहनों का स्नेह मिलेगा ही साथ ही साथ सास-ससुर पति इन सब का भी पूर्ण प्रेम प्राप्त होगा तथा वह अपने माता-पिता को याद नहीं आएगी ,परंतु जब वह 14 वर्ष अकेली रहती है तो वह सोचती है कि क्या मेरा इतना भी अधिकार नहीं है कि मैं अपने पति के साथ रहूं उनके साथ राजभवन में ना सही वन ही जाऊँ. नवविवाहिता उर्मिला जिसके हाथों का वैवाहिक रंग अभी तक हल्का भी न पड़ा था कि लक्ष्मण के 14 वर्ष का वियोग अचानक सामने आ पड़ा .वह कांप उठती है तथा मूर्छित हो धरती पर गिर जाती है. तब सभी उसकी वेदना को समझ लेते हैं क्योंकि सीता जी को राम के साथ प्रवास मिलता है तथा मांडवी श्रुति कीर्ति को भी पति का साथ मिलता है परंतु उर्मिला ही आज पति से दूर है.
वेदना के एक-एक दिन उर्मिला के लिए एक-एक युग के बराबर है .उर्मिला के बाह्य पक्ष में तो वहां मुक्त होकर सासुओं की सेवा करने के साथ ही साथ वह अपना ध्यान अन्य कार्यों में बांटने की कोशिश निस्वार्थ भाव से करती है, पर जब आंतरिक पक्ष की बात आती है तो वह अपने प्रियतम को पाने के लिए व्याकुल हो उठती है तथा उनके दर्शन की भी कामना करती हैं .माखनलाल चतुर्वेदी ने उर्मिला के आंतरिक पक्षों को बहुत ही सुंदर शब्दों में वर्णन किया है कि जब कामदेव अपने पुष्प बाण से उर्मिला पर आक्रमण करते हैं तो वह कहती हैं-"मुझे फूल मत मारो ,मैं अबला बाला, वियोगीनी कुछ तो दया विचारों ." उर्मिला अपना मन बहलाने के लिए विविध कला सिखाती है .वह पशु -पक्षियों को पाल लेती है .उनसे अपने दुख  बाँटती है.  उर्मिला आँसू बहा कर अपना दुख भले ही थोड़ी देर के लिए हल्का कर लेती हो किंतु पुष्प, पेड़-पौधे ,पशु- पक्षियों से उसे शिकायत रहती है कि उसे उसके प्रियतम से मिलाने में सहयोग नहीं करते .वह तो मकड़ी के प्रति सहृदय है और वह यही तो चाहती है कि उसके उनके मन का  प्रतिबिंब उनपर पड़े और वह उसकी इस अवस्था को पहचान सके.
 14 वर्ष में सभी ऋतुएं कई बार आई ,लौट गई परंतु इन ऋतुओं का उर्मिला पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. वह अब भी अपने प्राण प्रिय लक्ष्मण के लिए व्याकुल है .वह सोच रही है लक्ष्मण के सानिध्य के लिए, किंतु क्या और भी किसी ने सोचा कि वे भी एक नारी हैं.



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