1. नवनिर्माण
(कवि त्रिलोचन जी )
चतुष्पद - १
तुमने विश्वास दिया है मुझको,
मन का उच्छ्वास दिया है मुझको|
मैं उसे भूमि पर संभालूंगा ,
तुमने आकाश दिया है मुझको |
शब्दार्थ :
उच्छ्वास - आह भरना , (यहां पर जीवन )
भूमि - धरा , धरती
आकाश - अंबर
भावार्थ :
कवि त्रिलोचन जी इस कविता के माध्यम से आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए कहते हैं कि हमारा जन्म इस पृथ्वी पर हुआ है उसके पीछे कोई ना कोई उद्देश्य है| कवि कहना चाहते हैं कि एक अलौकिक शक्ति जिसे हम भगवान कहते हैं या अल्लाह कहते हैं या प्रकृति ,चाहे जो कह लो , हमें जो जन्म मिला है वह कुछ उद्देश्य पूरा करने के लिए मिला है| जिस तरह आकाश कितना बड़ा होता है हम उसको गिन सकते हैं क्या ?नाप सकते हैं क्या ?नहीं माफ सकते क्योंकि वह असीम है ,बहुत बड़ा है |ठीक उसी तरह कई अनगिनत उद्देश्य है हमारे जन्म के पीछे ; तो हमें उस उद्देश्य को पूरा करना है |हमारे इसी उद्देश्य को पूरा करने पर क्या होगा ; समाज एक नई दिशा की ओर मुड़ेगा | समाज को नई दिशा प्रदान करने के लिए प्रकृति ने बोलो या ईश्वर ,भगवान चाहो जो बोलो उन्होंने हमको इस पृथ्वी पर भेजा है ताकि हम एक नए समाज का निर्माण कर सकें|
उपर्युक्त पंक्ति में कवि त्रिलोचन जी का हमें समाज की ओर आशावादी दृष्टिकोण नज़र आता है|
चतुष्पद - २
२) सूत्र यह तोड़ नहीं सकते है|
तोड़कर जोड़ नहीं सकते है |
व्योम में जाए, कहीं भी उड़ जाए ,
इस भूमि को छोड़ नहीं सकते हैं |
शब्दार्थ :
व्योम - आसमान , आकाश
भूमि - धरा , धरती
भावार्थ :
कवि त्रिलोचन की कहना चाहते हैं कि सृष्टि में जो चीज का भी निर्माण हुआ है उसके साथ हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते है |
जिस प्रकार किसी भी चीज को हमें तोड़ना नहीं चाहिए ,संभाल कर रखना चाहिए, फिर चाहे वह रिश्ता हो या कुछ और हो | जैसे हम अपने रिश्ते को संभाल कर रखते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि वह टूटना नहीं चाहिए |अगर मान लीजिए टूट जाता है तो क्या होगा? पुनः वह रिश्ता जुड़ नहीं पाएगा और अगर जुड़ भी जाता है तो रिश्तो में खटास आ जाती है|
अत: सृष्टि का नियम है कि जो चीज जैसी है , उसे वैसे ही उसे सुरक्षित रखना है और अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो वह टूट जाएंगी और टूटी हुई चीज कभी जुड़ सकती नहीं है |
कवि आगे कहते हैं कि जैसे ही हमारा जन्म होता है हमारा नाता इस पृथ्वी से जुड़ जाता है ,इस धरती से जुड़ जाता है और चाह कर भी हम उसे तोड़ नहीं सकते हैं इसीलिए हम कहीं भी चले जाए दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं हम मातृभूमि से हमेशा जुड़े हुए ही रहेंगे और यही सत्य है |
चतुष्पद ३
सत्य है राह में अंधेरा है ,
रोक देने के लिए घेरा है |
काम भी और तुम करोगे क्या ,
बढ़े चलो सामने अंधेरा है |
शब्दार्थ : -
सत्य = सही
घेरा = रुकावट
अंधेरा = अंधकार (यहां पर मुसीबत)
भावार्थ :-
यह एक चतुष्पद विधा का काव्य है |
कवि त्रिलोचन जी कहना चाहते हैं कि हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिस मार्ग पर चलना हैं, उस मार्ग पर अंधेरा है |अंधेरा से यहां पर कवि मुसीबत से लेते हैं वे कहते हैं कि हमको लक्ष्य प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और हम अपने लक्ष्य को प्राप्त ना कर सके इसीलिए अनेक समस्याएं हमें घेर लेगी लेकिन हमें उन समस्याओं को पार करते हुए ,जूझते हुए अपने मार्ग पर सतत बढ़ते रहना है |
कवि कहना चाहते हैं कि अगर हम चुनौतियों का सामना नहीं करेंगे तो हम क्या करेंगे ?खाली तो हम बैठ सकते नहीं हैं |कोई भी चीज यदि हम को आसानी से मिल जाती है तो हमें उस चीज की कीमत रहती नहीं है |उस चीज का हम मूल्य समझते नहीं हैं| कोई चीज अगर मेहनत करके मिलती है तो हम उसको बहुत अच्छे से रखते हैं और उसकी कीमत को भी अच्छी तरह से समझ सकते हैं ;इसीलिए बिना मेहनत के हमको कुछ मिलने वाला नहीं है हमको लगातार अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मार्ग में आने वाली चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते चले जाना है और सामने जो अंधेरा है उसको भी पार कर कर आगे बढ़ना है ताकि हमको हमारी मंजिल मिल जाए |
चतुष्पद ४
बल नहीं होता सताने के लिए ,
वह है पीड़ित को बचाने के लिए|
बल मिला है तो बल बनो सबके ,
उठ पड़ो न्याय दिलाने के लिए |
शब्दार्थ :-
बल = ताकत
सताना = दूसरों को परेशान करना
पीड़ित = तकलीफ को सहने वाला
भावार्थ :-
मनुष्य को अपना कर्तव्य समझाते हुए कवि त्रिलोचन जी कहते हैं कि व्यक्ति अगर बलशाली है तो उसने अपने बल का प्रयोग उचित जगह करना चाहिए | उसने हर निर्बल व्यक्तियों की रक्षा करनी चाहिए कहने का तात्पर्य यह है कि हर व्यक्ति के पास बल होता है ; किसी के पास शारीरिक बल यानी बहुत ज्यादा ताकत होती हैं तो किसी के पास बौद्धिक बल होता है , दिमाग से कोई - कोई बहुत चतुर या होशियार होता है |
यहां पर कवि यह संदेश दे रहे हैं कि भगवान ने जो हमें ताकत दी है चाहे वह शरीर की ताकत हो चाहे वह दिमाग की ताकत हो ; तो उसका हमें सही प्रयोग करना चाहिए अर्थात जो पीड़ित व्यक्ति है उसको बचाने के लिए करना चाहिए |निर्बल व्यक्ति के ऊपर हमें अपना शारीरिक बल या बौद्धिक बल आजमाना नहीं चाहिए | इससे उसको हानि पहुंच सकती है ,क्षति पहुंच सकती है |भगवान ने हम को जो ताकत दी है , जो शक्ति दी है हमें जो बल दिया है उसका प्रयोग दूसरों को सताने के लिए नहीं करना चाहिए बल्कि पीड़ितों को बचाने के लिए करना चाहिए |भगवान द्वारा प्राप्त बल के माध्यम से हमें सब की ताकत बनना है और जिस पर अन्याय हो रहा है उसको हमें न्याय दिलाने के लिए मदद करना चाहिए यही हमारा कर्तव्य है |
चतुष्पद ५
जिसको मंजिल का पता रहता है ,
पथ के संकट को वही सहता है |
एक दिन सिद्धि के शिखर पर बैठ ,
अपना इतिहास कहता है |
शब्दार्थ :-
मंजिल = लक्ष्य
संकट =विपत्ति
पथ = मार्ग ,रास्ता
सिद्धि = सफलता
शिखर = पर्वत की चोटी
भावार्थ :-
कवि त्रिलोचन जी मनुष्य को आशावादी रहने का आवाहन देते हुए कहते हैं कि जिस व्यक्ति को अपनी मंजिल दिखाई देती है वह सर्वप्रथम कई कष्टों को ,बाधाओं को पार करते हैं|
सफलता का मार्ग अति कंटकमयहोता है |यहां कवि मनुष्यों का हौसला बढ़ाते हुए उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि सच्चा मनुष्य वहीं है जो सफलता के मार्ग में आने वाली समस्याओं का डटकर सामना करता है | संकटों की शरण ना जाकर विघ्नों को गले लगाते हुए सही मायने में वही व्यक्ति सफलता का अधिकारी हो जाता है |
कवि आगे कहते हैं कि जो भी मनुष्य इस विषम परिस्थितियों से लड़ता है वही एक दिन सफलता के शिखर को पा लेता है | इस शिखर को पाने के लिए उसने कितने बलिदान दिए , कितनी तकलीफें उठाई ऐसी प्रेरणा वह अन्य लोगों को भी देते हैं और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं |
इस प्रकार मनुष्य को कवि ने हमेशा जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण रखने का संदेश इस चतुष्पद पद में दिया है|
चतुष्पद ६ : -
प्रीति की राह पर चले आओ ,
नीति की राह पर चले आओ |
वह तुम्हारी ही नहीं , सबकी है ,
गीति की राह पर चले आओ |
शब्दार्थ : -
प्रीति =प्रेम
नीति = व्यवहार का ढंग
गीति = गान ,गीत
भावार्थ :-
इस चतुष्पद में कवि त्रिलोचन जी सभी से प्रेम के मार्ग को अपनाने का आवाहन करते हैं | उनका कहना है कि समाज में रहना है तो हमें सभी के साथ मिल-जुल कर प्रेम पूर्वक रहना चाहिए| इस तरह मित्रता पूर्ण व्यवहार में रहेंगे तो हमारा जीवन बहुत सरल एवं व अच्छा हो जाएगा |
कवि का तात्पर्य है कि यदि हम सब के साथ प्रेम पूर्ण ढंग से व्यवहार करेंगे तो सामने वाला भी हमसे उसी तरह पेश आएगा | इससे हममें एकता नजर आएगी और बहुत ही खुशी- खुशी अर्थात हंसते -गाते हमारा जीवन आगे बढ़ता जाएगा |
चतुष्पद ७ :-
साथ निकलेंगे आज नर-नारी ,
लेंगे कांटों का ताज नर-नारी|
दोनों संगी है और सहचर है,
अब रचेंगे समाज नर नारी|
शब्दार्थ :-
सहचर = साथ -साथ चलने वाला, सहगामी
रचना = निर्माण करना
भावार्थ :-
इस चतुष्पद में कवि ने स्त्री और पुरुष के अंतर को मिटाकर उनमें समानता ही है इस बात को बताया है | कवि त्रिलोचन जी कहते हैं कि जिस तरह से एक साइकिल के दो पहिए होते हैं तभी वह साइकिल बराबर चलती हैं, स्त्री -पुरुष भी उसी साइकिल के चक्के की तरह होते हैं अर्थात समाज का निर्माण या विकास नर और नारी दोनों मिलकर करते हैं | वे दोनों एक दूसरे के पूरक है|
स्त्री - पुरुष में समानता की भावनाओं को स्पष्ट करते हुए कवि कहते हैं कि यदि स्त्री और पुरुष एक साथ मिलकर कार्य करें तो सामने कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न हो वह जल्दी से दूर हो जाती है | कवि कहते हैं कि अब समय आ गया है कि स्त्री और पुरुष दोनों साथ- साथ में कार्य कर समाज को एक नई दिशा प्रदान करेंगे ,एक नई गति प्रदान करेंगे|
चतुष्पद ८ :-
वर्तमान बोला,अतीत अच्छा था,
प्राण के पथ का मीत अच्छा था |
गीत मेरा भविष्य गाएगा,
यो अतीत का भी गीत अच्छा था|
शब्दार्थ :-
वर्तमान = समय जो अभी चल रहा है
अतीत = बीता हुआ कल
पथ = रास्ता ,मार्ग ,राह
मीत = मित्र
भविष्य = आने वाला कल
भावार्थ :-
इस चतुष्पद पद में कवि कहते हैं कि मनुष्य अपने वर्तमान अर्थात आज में न जीते हुए अपने अतीत में वह जीता है या भविष्य को संवारने के सपने देखता है| कवि यहां यह कहना चाहते हैं कि जो समय बीत गया वह हमारे हाथ में नहीं रहा तथा
भविष्य अपने समय के अनुसार आएगा वह अभी हमारे हाथ में नहीं है; हमारे हाथ में यदि है तो वह है वर्तमान...| कवि कहते हैं कि हमें अपने वर्तमान में जीना चाहिए|
समय के महत्व को स्पष्ट करते हुए कवि कहना चाहते हैं कि हमें अतीत का समय अच्छा लगता है क्योंकि उसमें बहुत अच्छे- अच्छे मित्र हमको मिले थे लेकिन कवि यह कहना भी चाहते हैं कि अभी जो वर्तमान चल रहा है वह अतीत में बदल जाएगा तब वह हम को अच्छा लगने लगेगा | इसलिए हमने वर्तमान को भी पसंद करना चाहिए| इसी तरह से हमारा आने वाला कल अर्थात हमारा भविष्य भी सुनहरा ही होगा|
नवनिर्माण कविता का रसास्वादन :-