Saturday, June 15, 2024

बाबू जी

 कवि संजीव सिंह जी की पिता और पुत्री  पर बनी कविता 

                       बाबू जी  


सच बात पूछती हूं बताओ ना बाबूजी 

छुपाओ ना बाबू जी 

क्या याद मेरी आती नहीं 


पैदा हुई घर में मेरे  मातम- सा छाया था 

पापा तेरे खुश थे मुझे मां ने बताया था 

ले - ले के नाम प्यार जताते भी मुझे थे

आते थे कहीं से तो बुलाते भी मुझे थे 

 मैं हूं नहीं तो किसको बुलाते हो बाबूजी...?

रुलाते हो बाबूजी

क्या याद मेरी आती नहीं .....


हर ज़िद मेरी पूरी हुई 

हर बात मानते 

बेटी थी ,मगर बेटों से

ज्यादा थे जानते 

घर कभी होली कभी दीपावली आई 

सैंडिल भी मेरी आई मेरी फ्रॉक भी आई 

अपने लिए बंडी भी न लाते थे बाबूजी 

क्या कमाते थे बाबूजी 

क्या याद मेरी आती नहीं......


सारी उमर खर्चे में कमाई में लगा दी 

दादी बीमार थी, तो दवाई में लगा दी

पढ़ने लगे हम सब तो पढ़ाई में लगा दी 

बाकी बचा वो मेरी सगाई में लगा दी 

अब किसके लिए इतना कमाते हो बाबू जी 

बचाते हो बाबू जी 

क्या याद मेरी आती नहीं.....


कहते थे मेरा मन कही एक पल लगेगा 

बिटिया विदा हुई तो घर ये घर न लगेगा

कपड़े कभी,गहने कभी सामान संजोते 

तैयारीयां भी करते थे ,

छूप - छूप थे रोते 

कर- कर के याद अब तो न रोते हो बाबू जी 

न सोते हों बाबू जी 

क्या याद मेरी आती नहीं.....


कैसी परंपरा है ये कैसा विधान है....?

पापा बता ना मेरा कौन - सा मेरा जहां है

आधा यहां आधा वहां जीवन है अधूरा

पीहर मेरा पूरा हैं न

ससुराल है पूरा

क्या आपका भी प्यार अधूरा है बाबूजी

न पूरा है बाबू जी 

क्या याद मेरी आती नहीं.....